Tuesday, May 18, 2010

अधूरी दास्तान ....

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मेरा हर लफ्ज़ ... हर हर्फ़ ...बस तेरे लिए लिखा मैंने,
मेरी साँसे ....तेरा एहसान,ये ज़िन्दगी तुझपे निसार लिखा मैंने.
तू आया था ज़िन्दगी में मेरी एक अजनबी बनकर,
बेजान इस रिश्ते को बस बेनाम लिखा मैंने.

करती रही उस ख़ुदा
से बस तेरी खातिर शिकायतें
तुजे इन आँखों का ख्वाब
जिन्दगी का अरमान लिखा मैंने
जब भी पूछे मुज से कोई की
कोण है वो जिस के लिए लिखते हो..?
तुझे अपनी ग़ज़ल ,
अपनी नज़्म और
अपनी पहचान लिखा मैंने।

यु तो लिखे जाते है किताबो में कई सारे अफ़साने,
शुरू तेरे नाम से जो की उसे अपनी अधूरी दास्ताँ लिखा मैंने…॥!!!
पलक

1 comment:

संजय भास्‍कर said...

मन की पवित्रता का परिचय देती सुंदर कविता