Tuesday, August 31, 2010

Saturday, August 28, 2010


क्या खूब एहसास है प्यार का

मन की अँधेरी मिटटी मै

पड़ा रहता है चुप चाप सा

पर जब किसी सूरज का

उष्म स्पर्श पाया

तोह चला आता है

वो अंधेरो की मिटटी से बहार

लहराता .... झूमता

सफ़ेद - पाक ... खुशबूदार
------प्यार -----


Tuesday, August 24, 2010



अपनी यादें अपनी बातें ले कर जाना वों भूल गया,

जाने वाला जल्दी मैं था मिल कर जाना भूल गया..

मुड मुड कर देखा था उस ने आधे रस्ते से मुझे ,

जैसे उसे कहना था कुछ ...जो वों कहना भूल गया.

वक़्त-इ-रुखसत मेरी आँखें पोंछ रहा था अंचल से,

उसको ग़म था इतना ज्यादा खुद वों रोना भूल गया
पलक

Saturday, August 7, 2010

बचपन ... कहा खो गया तू...!!!


-शायद ज़िन्दगी बदल रही है!!
जब मैं छोटा था, शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी..

मुझे याद है मेरे घर से "स्कूल" तक का वो रास्ता, क्या क्या नहीं था
वहां, चाट के ठेले, जलेबी की दुकान, बर्फ के गोले, सब कुछ,
अब वहां "मोबाइल शॉप", "विडियो पार्लर" हैं, फिर भी सब सूना है..
शायद अब दुनिया सिमट रही है...


जब मैं छोटा था, शायद शामे बहुत लम्बी हुआ करती थी..

मैं हाथ में पतंग की डोर पकडे, घंटो उडा करता था, वो लम्बी "साइकिल रेस",
वो बचपन के खेल, वो हर शाम थक के चूर हो जाना,
अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है.
शायद वक्त सिमट रहा है..

जब मैं छोटा था, शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी,

दिन भर वो हुज़ोम बनाकर खेलना, वो दोस्तों के घर का खाना, वो लड़कियों की
बातें, वो साथ रोना, अब भी मेरे कई दोस्त हैं,
पर दोस्ती जाने कहाँ है, जब भी "ट्रेफिक सिग्नल" पे मिलते हैं "हाई" करते
हैं, और अपने अपने रास्ते चल देते हैं,
होली, दिवाली, जन्मदिन , नए साल पर बस SMS आ जाते हैं
शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं..

जब मैं छोटा था, तब खेल भी अजीब हुआ करते थे,

छुपन छुपाई, लंगडी टांग, पोषम पा, कट थे केक, टिप्पी टीपी टाप.
अब इन्टरनेट, ऑफिस, हिल्म्स, से फुर्सत ही नहीं मिलती..
शायद ज़िन्दगी बदल रही है.

जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है.. जो अक्सर कबरिस्तान के बाहर बोर्ड पर
लिखा होता है.
"मंजिल तो यही थी, बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी यहाँ आते आते "

जिंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है.
कल की कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल सिर्फ सपने मैं ही हैं.
अब बच गए इस पल मैं..
तमन्नाओ से भरे इस जिंदगी मैं हम सिर्फ भाग रहे हैं..
इस जिंदगी को जियो ना की काटो

Wednesday, August 4, 2010


पल ऐसा थी की हम इंकार ना कर पाए,
जामाए के डर से इकरार ना कर पाए...
ना थी जिनके बिना ज़िन्दगी मुनासिब,
छोड़ दिया उन्होने ..... और हम सवाल ना कर पाए...