Monday, May 17, 2010

ये चाँद ...!!!!


ये चाँद
बड़ा मन-मौजी है
खुदके बुज़ुर्ग से रौशनी चुराते
बादलों में छुपते छुपाते
निगेहबानी से बचते बचाते
शागिर्दी से दूर
तनहा तनहा रातों के घनघोर पहरों में
सफ़ेद रंग की चंद धागों से रंगे लिबास में
दबे दबे पाऊँ से, आहट की चुप्पियों में
पहुँच जाता है जवान महफिलों में
किसी शायर की ग़ज़लों में
किसी महबूब की मिसालों में
खिलौने की जिद्द पे अड़े हुए फूल जैसे बच्चे की आँखों में
सुहागन के कारवां चौथ की रातों में
समंदर किनारे बाहें जोड़ कर बैठे हुए प्यार में डूबे दिलों में
या फिर, खिड़की के ज़रिये
पहुँच जाता है किसी दुल्हन के कमरे में
उडते हुए रेशमी पर्दों के किनारों से
तारीफों का आइना लिए... ...


पलक

1 comment:

संजय भास्‍कर said...

ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .