Wednesday, May 5, 2010

इंतज़ार तेरा ....

Again

आज की रात, कल की रात से कुछ जुदा तो नहीं,
मैं भी वोही हूँ, मेरी सोच वोही, वोही शायरी मेरी,
और यह कलम भी वोही….
फिर क्यों ना कल यह ख्याल आया की,
ग़ज़ल तेरे तसवूर बिना कुछ भी नहीं,
दर्द नहीं जो इसमे तो यह दावा भी नहीं.
तन्हाई है इसमे, महफ़िल की शनासाई नहीं,
साज है इसमे मगर गूँज-इ-सहनाई नहीं…..
मेरे चन्दा, तेरी चांदनी के पास
कुछ लफ्ज है टूटे हुए,
जो जुड़ गए यह तो समझो हाल-इ-दिल बयां हुआ…
किस्मत मैं मेरी वोही इंतज़ार पुराना लिखा शायद,
जो मिल जाओ तुम तो समझें गे कुछ नया हुआ……

i like this poem so post here in my blog

palak

1 comment:

Anonymous said...

This is lovely poem
~Pearl...