ऐसी ही सर्द शाम थी वो भी ....
जब वो मेहँदी रचाएं हाथों मैं ....
मेरे पास वो आई थी .......
ज़मानी से बच कर ....
सब से नज़रे चुरा कर....
सुर्ख अचल मैं मुह छुपाये हुए ...
ख़त अपने मुज से लेने आई थी वो....
उस की सहमी हुई निगाहों मैं .....
कितनी खामोश सी बाते थी ......
उसके दिल मै कही अनकहे सवाल थे ..
उस के चेहरे की जर्द रंगत मैं ....
कितनी मजबूरियों के साये थे ....
मेरे हाथों से ख़त लेते हुए .....
ना जाने क्या सोच के अचानक वो .....
मुज से लिपट कर रोई थी ....
उस के गुलाबी होठों के ....
कपकपाते किनारों पर ...
कही अन कहे फसाने थे .....
सर्द शाम मैं आज भी अक्सर ....
उस की रुख्सदी का मंज़र .....
मेरी आखों मैं जिलमिलाता है .....
बस एक वही लम्हा .....
मुज को अपनी तरफ़ ....
बार बार खिचता है ....
ऐसी ही सर्द शाम थी वो भी ...
जब वो मेहँदी रचाए हाथों मैं ....
मेरे पास आई थी.......
पलक ....!!!!!
3 comments:
palak ye batao sab se pehlay ye jo mehndi bharay haath hai wo kya tumharay hai..kyu ki jaha tak muje lagta hai this is ur hands...may be i m wrong.. aur agar ye tumharay hai to its awesome.....
yes one more thing this poem is really superb.....
Wish i could write such lovely poems...
I really like the way Pal described her...
Pearl...
aap kafi achha likhti hain, bahut khub
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