Thursday, September 4, 2008

अमानत.....


सुर्ख सी खुशी है... नादान सी जरुरत...
धीरे धीरे सासों को भी हो चुकी एक मुद्दत .....
असमानों के परे ...कही खिल रहा एक फूल ....
कैसे कह दू की क्या है वो...
अगर कह दू.. तो तुम हो ....अगर न कुछ तो नजाकत हो.....
वो कदमो पर तेरा यु कदम रख कर चलना .........
थोडी अनकही.. थोडी शोख... कुछ रूठी.. कुछ सहमी....
हर आरजू की एक छोटी सी एक चाहत ...........
चाहत के धागे का वो एक सिरा ... मैंने अपने दिल से बाँध रखा....
और सहज कर रखा है तेरी वो नजदीकियों की अमानत.....


.......पलक.......

2 comments:

Anonymous said...

चाहत के धागे का वो एक सिरा ... मैंने अपने दिल से बाँध रखा....
और सहज कर रखा है तेरी वो नजदीकियों की अमानत
I like these line...
Pearl...

Dr. Ravi Srivastava said...

Din mein kab socha karte they sooyege hum raat kahan
ab aisey awara ghoomey apne woh haalaat kahan
tab they ter rawi par nadan ab manzil per tanha hain
soch rahe hain in haathon se choota tha woh haath kahan....

I really miss you