कदम रुक जाते हे
कई बार पलट कर
जब हम बीते लम्हों को टटोलते हे,
यही तो तुम खड़े थे
वो कम शक्कर की चाय के कप पर
वो बरसती शाम की बूंदों पर
तुमने मुझे पास बुला कर कहा था
की "तुम्हारे बिना जिया नही जाता"
वो बूंदे गवाह थी, तुम्हारे इज़हार की
वो गवाह वक्त के साथ सूख गए
पर यादे.....
वो वही उसी कमरे में
खिड़की पर तुमसे छुट गई
चाय का कप तो धुल गया
पर उस मे जमी तुम्हारी
खुशबू मिट नही पाई...
आज भी बारिश बहुत तेज हे
खुली खिड़की की आवाज़.. लगता हे
तुम्हे बुला रही हे
कदम रुक जाते हे
कई बार पलट कर जब हम
बीते लम्हों को टटोलते हे..
कई बार पलट कर
जब हम बीते लम्हों को टटोलते हे,
यही तो तुम खड़े थे
वो कम शक्कर की चाय के कप पर
वो बरसती शाम की बूंदों पर
तुमने मुझे पास बुला कर कहा था
की "तुम्हारे बिना जिया नही जाता"
वो बूंदे गवाह थी, तुम्हारे इज़हार की
वो गवाह वक्त के साथ सूख गए
पर यादे.....
वो वही उसी कमरे में
खिड़की पर तुमसे छुट गई
चाय का कप तो धुल गया
पर उस मे जमी तुम्हारी
खुशबू मिट नही पाई...
आज भी बारिश बहुत तेज हे
खुली खिड़की की आवाज़.. लगता हे
तुम्हे बुला रही हे
कदम रुक जाते हे
कई बार पलट कर जब हम
बीते लम्हों को टटोलते हे..
palak
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