तितली जो एक मुज़ को मिली थी किताब मैं ,
वो अपना अक्स छोड़ गई मेरे ख्वाब मैं ,
अब तक वो मेरे जेहन में उल्जा सवाल है,
शामिल रही जो हर घड़ी मेरे नसीब में,
आंखों में नींद है ना कोई ख्वाब दूर तक,
रेहते है हम भी आज कल वैसे आजाब में,
मिलता है गर्दिशों से गले लग के चाँद भी ,
आए थे सिमट के फासले कितने सराब में,
आख़िर मेरी वफ़ा का मुझे क्या सिला मिला,
लिखा ना एक हर्फ़ भी उसने जवाब मैं ..!!!... पलक.....
1 comment:
ekbar hamara aansun hamse puch baitha”hume roj roj kyun bulate ho” hum ne kahan,
“hum yaad to unhi ko karte hain tum kyon chale ate ho?
....raaaj
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