ख्वाहिश है कुछ यु तुज से मिलु कभी मैं
हो सारी दुनिया सोई ..बस जगे हो तुम और मैं
फर्क क्या मुझे हो जो उस रात ना निकले चाँद
दिखता हैं यु भी तेरा चेहरा चाँद मैं मुझे
तुम धीरे से कुछ कहते कहते रुक जाओ
और फिर रात से कहो एक पल के लिए थम जाओ
वक्त भी थम जाए उस दिन सुन ने को तुम्हे
फ़िर अपनी किस्मत पे क्यों ना इतराऊं मैं
मैं तुम्हे बस रात भर देखती रहू
तुम्हारी आँखों में हर पल और ज्यादा डूबती रहू
तुम्हारे बातें सुन बज उठे है सारे एहसास
उस एहसास मै रात भर क्यों ना रहू मैं
और भी क्या जाने हर पल सोचती हु मैं
क्यों दीवानी की तरह तुम्हे चाहती हु मैं
जानती हु ये सब कभी मुमकिन नही पर फ़िर भी
ख्वाहिश है कुछ यु तुजसे मिलु कभी मैं ..पलक...
6 comments:
वो तो मजबूरीयों मैं लिपटी हैं
अपनी शिद्दत भरे ख्यालों मैं
अपनी अंदर छुपी एक औरत मैं
वो हमेशा ही डरती रहती हैं
न तो जीती हैं न तो मरती हैं
पर्ल
Hey, yahi to meri bhi ख्वाहिश है कुछ यु तुज से मिलु कभी मैं
....Ahhaa!!!! Palak, aap ne to ek hi jhatkey me dil ki baat kah dali hai.
...Ravi
kitna miss kar rahay thay tera likhna. ab ja kar is blog se hum atlest teri likhi hue poems to kabhi hame yaha padhnay ko mil hi jagti hai. anyways this is really very lovely.
Pankti
Smilpy superb
Rishi
As usual snap is really good . and the poem is also great. keep posting
veena deepak
Asar hai ye unki adaao ka, jab wo itne pyaare lagte hai,
Jab wo kahte hai vadda hai mera, juthe waade bi sachee lagte hai.
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