Monday, June 21, 2010




वो एक शक्श कहा से आया अजनबी बन कर....ना जाने कितनी उम्मीद से जुड़ कर वो मुझे जिंदगानी दे गया ..... जो चुपके से मेरे ख्यालों मै आता है और मेरी अनकही सादगी को महोब्बत से अपना लेता है ... वो मेरे उल्ज़े उल्ज़े से खयालो मै बस्ता है....दूर बैठे बदलो की खिड़की से जाखता हुआ सफ़ेद मलमल मै लिपटा चाँद सा लगता है ... जिस से मै हजारो मिलो दूर से घंटो तकती अनगिनत बेजुबान लव्जो से गुफ्तगू करती ...लडती... मानती.... बाते करती जी लेती हु .... मेरी आदतों को अपना खुदा बना कर वो आज कल मेरी ही आदत बन चूका है ...... हाथो को यु हल्क्तय से थमता है की कंगन भी शर्मा जाता है..... जब भी वो बाते कराय मुज से ....जैसे मेरे होठ सिल कर कोई लव्ज़ दफनाता है ...क्या कहे उनकी महोब्बत का हर रंग मुझे साँस से साँस जीना सिखाता है ..... होके गुमशुदा अधूरे एह जायेगे हम... उन के बिना कितना खौफ कितना सन्नाटा है .... की ना जाओ ये कहती है हर साँस कैसे कहू की रूह से जुदा हो कर जिस्म का कोई वजूद ना होगा ......
~~~~~~~~~~~~~~~~~palak ~~~~~~~~~~~~~~~~~

1 comment:

Anonymous said...

How could you find such lovely words... i think only sweet person like you can write like this...

~Pearl...