Friday, July 23, 2010


तेरी नज़र को फुरसत ना मिली दीदार की,
वर्ना मेरा मर्ज़ इतना ना - इलाज ना था,
हम ने वहां भी मोहब्बत ही बांटी
जिस शहर में मोहबत का रीवाज न था.

2 comments:

Anonymous said...

मोहबत के रिश्ते ........... संभालो प्यार से इनको अगर ये छूट जाएँगे .... खिलोनों की तरह गिर कर ज़मीन पर फूट जाएँगे ॥ बहुत मुश्किल से बनते हैं मुहब्बत का यहाँ रिश्ते

Pearl...

संजय भास्‍कर said...

बहुत खूब, लाजबाब !