Tuesday, July 27, 2010


तुम हो औरों की महफ़िल मैं मसरूफ,

यहाँ मैं हूँ और आलम-इ-तन्हाई..

अब लोग मुझे तेरे नाम से जानते हैं..

पता नहीं ये मेरी शोहरत है या रुसवाई..

1 comment:

sunil said...

Unhe "paa" na sake hum kabhi....magar khoya "humesha" ke liye.....

pata nahi yeh unki "ruswai" hai ya humari "bewafai"!