Wednesday, December 17, 2008


है अफताब उसमें ऐसा
जलना ज़मीन को पड़ता है
नशा तो उनकी बातों मैं होता है
तड़पना इस दिल को पढता है

यह तेरी ही बातों का कसूर है
मैं अकेली तोह गुनेगार नही
यह तेरी ही अदाओं का सुरूर है
यह इश्क कसूरवार तोह नही

3 comments:

Anonymous said...

I've found out a reason for me
To change who I used to be
A reason to start over new
and the reason is you

Pearl...

!!अक्षय-मन!! said...

आप बहुत ही बहुत ही बहुत ही अच्छा लिखते हो मुझे लगता है हवाओं का रुख बदला हुआ है
मोहब्बत की फिजाओं का नशा छ रहा इन कातिल शब्दों में जो सीधे सिने को चीर दिल में उतर जाते हैं...
मुझे बहुत पसंद आती है आपकी शायरी ...

ss said...

यह तेरी ही बातों का कसूर है
मैं अकेली तोह गुनेगार नही"

bahut khoob.