Wednesday, December 10, 2008

कोरे कागज़ की कहानी ...!

कुछ अनकही बातों से …
बयान कर जाते है…
कुछ दिल से नगमे प्यार के गुन गुनते हैं…
क्या कहे कोरा कागज़ कभी…
दर्द तो उसमे भी होता हैं…
इज़हार ना करे कभी…
की जलना उसको भी होता है
कही नही कभी किसीसे दास्तान अपनी
की दूसरों के ज़ज्बात ही वोह कहता है…
कितना कोमल है… कितना मासूम… है
सब के सपनो को आकर देता हैं…
लफ्जों को उसका आधिकार देता है…
सुनता हैं सभी की कहानी हमेशा
अपना किस्सा कभी ना किसी से कहता हैं…
क्यूंकि खामोशी का इज़हार, कभी किसी ने कहा देखा है…
की कोरे कागज़ की है ये कहानी अनसुनी ......
पलक

1 comment:

Anonymous said...

Awesome.... Lovely....

क्यूंकि खामोशी का इज़हार, कभी किसी ने कहा देखा है…

Pearl...