उठी जो दिल मैं एक आह,
मेरे जज्बो के गवाह यह ग़ज़लें,
कितनी तमन्ना से लिखी मैंने,
तुमसे मिलने की चाह ग़ज़लें,
कभी मेरे आंसू पोछती ,
ज़माने की नफरत और बेरूखी से,
मुझे दिलाती पनाह ग़ज़लें,
तुम्हारी गोद मैं हो सर मेरा,
है ऐसी लम्हों की चाह ग़ज़लें,
दिलाएंगी मकाम यह मेरा.....यह फ़िर करेंगे मुझे तबाह
यह गज़लें .....
मेरे जज्बो के गवाह यह ग़ज़लें,
कितनी तमन्ना से लिखी मैंने,
तुमसे मिलने की चाह ग़ज़लें,
कभी मेरे आंसू पोछती ,
ज़माने की नफरत और बेरूखी से,
मुझे दिलाती पनाह ग़ज़लें,
तुम्हारी गोद मैं हो सर मेरा,
है ऐसी लम्हों की चाह ग़ज़लें,
दिलाएंगी मकाम यह मेरा.....यह फ़िर करेंगे मुझे तबाह
यह गज़लें .....
3 comments:
तुम्हारी गोद मैं हो सर मेरा,
है ऐसी लम्हों की चाह ग़ज़लें...
क्यूँ इस तरह चुपचाप दिल आवाज देता है,
क्यूँकर मेरे कमरे में तुम ही तुम बिखर गए|
जब रात अपने पैरों को जमीन पे रखती है,
हर बार मेरी पलकों पे कुछ सपने संवर गए|
Pearl...
हम तो फ़िदा हैं ऐसी गज़लों पर पूरी तरहां घायल कर दिया आपके इन शब्दों ने
कितनी ख्वहिश है किसी से कुछ दिल बात कहने की
मेरा उन तक पहुंचा पयाम भी तो हैं ये गजलें
एक नया सिलसिला और दोस्ती का नाम भी तो हैं ये गजलें
बहुत कोमल और सुंदर भावनाओं को ख़ुद में पिरोई हैं ये पंक्तियाँ .....
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