Friday, November 14, 2008

बस इतना ही तो चाहा था .....


बस इतना ही तो चाहा था .....
तेरे आँचल में मैं सो जाऊँ....
बस इतना ही तो सोचा था...
तेरी आँखों में बस जाऊँ....
क्या इतना गलत चाहा था, क्या इतना बुरा सोचा था.....
बस इतना ही तो चाहा था
तेरे सपनो में मैं खो जाऊँ....बस इतना ही तो सोचा था
तेरे गीतों के बोल में बन जाऊँ....
क्या इतना गलत चाहा था, क्या इतना बुरा सोचा था.....
बस इतना ही तो चाहा था
तेरे लबों की मुस्कान मैं बन जाऊँ ....
बस इतना ही तो सोचा था
तेरे अश्को में मैं घुल जाऊँ....
क्या इतना गलत चाहा था, क्या इतना बुरा सोचा था.....
बस इतना ही तो चाहा था
तेरी हर सांस में मैं मिल जाऊँ...
बस इतना ही तो सोचा था
तेरे हर सपने को साकार मैं कर पाऊं...
क्या इतना गलत चाहा था, क्या इतना बुरा सोचा था.....

one of my favourite poem from " meri Poems" so i post here...

jis ne bhi likhi hai bahut sunder likhi hai ....

2 comments:

Anonymous said...

haa sach...
jis ne bhi likhi hai bahut sunder likhi hai ....


Pearl...

amul said...

Hi Pal ,

bahut hi sunder......



तुम्हारा घर सजा दिया है

ओफ्फो... कितना अस्तव्यस्त रहते हो तुम
आज तुम्हारे घर गयी थी
तुम्हारे ऑफिस चले जाने के बाद
कोई भी चीज़ तुम्हारी
ठिकाने पर नहीं मिलती है...

पंखा चालू था
खिड़की भी खुली...
बारिश आ गयी तो?
बिखरे हुए सिगरेट के टुकड़े
फैले हुए अखबार
उफ़,चादर तक घड़ी नहीं करते हो...

और तो और...
मेज़ पर कुछ ख़याल भी पड़े थे
बेतरतीब से...

तुम्हारा कमरा ठीक कर दिया है
सब ठिकाने पर रख दिया है
और तुम्हारे बेपर्दा ख्यालों को
अपने लफ्ज़ ओढा दिए हैं मैने
और एक नज्म में लपेट कर
करीने से दराज में रख दिया है...