क्या चेहरा था, क्या आखे थी ....
क्या मासूम सी बोली थी ..
वो लड़की कितनी भोली थी .....
मानो ताज़ा फूल खिला हो ,
जब उसने पलके उठाई थी ,
बुलबुल जैसे चेह्का करती , कलियों जैसे मुस्काती वो ,
आखों मै दीपक से जलते, खुशियों की रंगोली वो..
जाने क्या क्या वो बाते करती, जाने क्यों वों शर्मा जाती ,
"तुम मुझे प्यारे हो " कह कर कितना वो शरमाई थी ,
मैने कहा दुनिया वालो के तिरो से बचना ...
"मुजपर क्यों कोई करेगा वार..? " हस्ते हस्ते वो बोली थी ..
एक दिन एक मदमस्त नजर ने उसका हसना छीन लिया ,
फूल तुम्हारा हो गया धूल रोते रोते वो बोली थी ..
मैंने कहा सिंदूर है तुम्हारी हसी की चाबी..
वो रोते रोते हस पड़ी थी ......
वो लड़की कितनी भोली थी ... वो लड़की कितनी भोली थी...
पलक
2 comments:
Palak bahuut sunder kavita hai ..aap ki har post itni acchi hai jaise koi jadu.. mai aap ki har post kafi bar padh chuka hu aur jitna pdho muje aur padhany ka man karta hai itni sunder hai sab.
kya ye aapka apna varnan hai Palak jee? Shayad aap kuch aise hi lagti ho!
Pearl...
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