Sunday, May 30, 2010




जिनकी झलक मे करार बहुत है…
उसका मिलना दुशवार बहुत है..

जो मेरे हांथों की लकीरों मे नहीं …….
उस से हमें प्यार बहुत है..

जिस को मेरे दिल का रास्ता भी नहीं मालूम…….
इन धडकनों को उसका इंतज़ार बहुत है..

ये हो नही सकता कि हम उन्हे भुला दे..
क्या करें हमे उसपे एतबार बहुत है..

Monday, May 24, 2010

ख्वाहिश ...!!!



सिर्फ इतना ही कहा है, प्यार है तुम से
जस्बातों की कोई नुमायिश नहीं की


प्यार के बदले सिर्फ प्यार माँगा है
रिश्ते की तो कोई गुज़ारिश नहीं की


चाहो तो भुला देना हमें दिल से
सदा याद रखने की सिफारिश नहीं की


ख़ामोशी से तूफ़ान सह लेते है जो
उन बादलों ने इज़हार की बारिश नहीं की


तुम मैं ही माना है रहनुमा अपना
और तो किसी चीज़ की ख्वाहिश नहीं की….

Friday, May 21, 2010

नाम ...!!!!!!


हथेली पर जिसे लिखती ...मिटती हो तुम
वोह नाम मेरा ही तो है

महेंदी जिसके नाम की रचाई है तुमने
वोह नाम मेरा ही तो है

सुनके जिसको पलके तेरी झुक जाती है
वोह नाम मेरा ही तो है

दिल पे तेरे जो नाम लिखा है
वोह नाम मेरा ही तो है

तेरे होंठों पे जो काँप रहा है
वोह नाम मेरा ही तो है

धड़कन में जो तेरी गूंज रहा है
वोह नाम मेरा ही तो है

अपना नाम जिससे जोड़ा है तुने
वोह नाम मेरा ही तो है

तेरे नाम के बिना जो अधुरा है
वोह नाम मेरा ही तो है

Tuesday, May 18, 2010

अधूरी दास्तान ....

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मेरा हर लफ्ज़ ... हर हर्फ़ ...बस तेरे लिए लिखा मैंने,
मेरी साँसे ....तेरा एहसान,ये ज़िन्दगी तुझपे निसार लिखा मैंने.
तू आया था ज़िन्दगी में मेरी एक अजनबी बनकर,
बेजान इस रिश्ते को बस बेनाम लिखा मैंने.

करती रही उस ख़ुदा
से बस तेरी खातिर शिकायतें
तुजे इन आँखों का ख्वाब
जिन्दगी का अरमान लिखा मैंने
जब भी पूछे मुज से कोई की
कोण है वो जिस के लिए लिखते हो..?
तुझे अपनी ग़ज़ल ,
अपनी नज़्म और
अपनी पहचान लिखा मैंने।

यु तो लिखे जाते है किताबो में कई सारे अफ़साने,
शुरू तेरे नाम से जो की उसे अपनी अधूरी दास्ताँ लिखा मैंने…॥!!!
पलक

Monday, May 17, 2010

ये चाँद ...!!!!


ये चाँद
बड़ा मन-मौजी है
खुदके बुज़ुर्ग से रौशनी चुराते
बादलों में छुपते छुपाते
निगेहबानी से बचते बचाते
शागिर्दी से दूर
तनहा तनहा रातों के घनघोर पहरों में
सफ़ेद रंग की चंद धागों से रंगे लिबास में
दबे दबे पाऊँ से, आहट की चुप्पियों में
पहुँच जाता है जवान महफिलों में
किसी शायर की ग़ज़लों में
किसी महबूब की मिसालों में
खिलौने की जिद्द पे अड़े हुए फूल जैसे बच्चे की आँखों में
सुहागन के कारवां चौथ की रातों में
समंदर किनारे बाहें जोड़ कर बैठे हुए प्यार में डूबे दिलों में
या फिर, खिड़की के ज़रिये
पहुँच जाता है किसी दुल्हन के कमरे में
उडते हुए रेशमी पर्दों के किनारों से
तारीफों का आइना लिए... ...


पलक

Sunday, May 16, 2010

तेरा ख़त...




तुम्हारा ख़त मिला
क्या कहू, क्या नहीं
जवाब क्या लिखु सूझता ही नहीं...


सारी बातें पिछले .... सर्द मौसम की
ठिठुरती हुई भेजी हैं
और मुझसे 'आंच' मांगी है ...

Thursday, May 13, 2010


सच है वक़्त कहा थमता है किसी के चले जाने से...

ये तो चलता रहा है सदियों तक,

चलता आया है जमाने से...

पर इंसान का क्या करे,

वो तो वोही उस पल में थम जाता है...

जिस पल उस से जुदा कोई शख्स उससे दूर बिना वजह चला जाता है...

तनहाइयों में तो उसके गम की कोई इन्तहा ही नहीं ...

और गर भीड़ हो लोगो की तो दर्द और गहराता हैं...

खुद को बहलाने का जरिया नहीं मिलता कोई....

दिल प्यासा है पर चाहत का दरिया नहीं मिलता कोई...

उम्मीद है बस महबूब का नाम रख दिल में...

और फिर मिलन हो उनसे ये दिलासा नहीं मिलता कोई...

यु तो और भी कई दिलदार मिलेंगे जिंदगी में शरीक होने...

पर उस की कमी कभी ना पूरी होगी .....

जब जताएगा कोई अपनी उल्फत बेहिसाब कभी उस से ...

ठीक उसी वक़्त जिंदगी और अधूरी होगी... पलक ......