मैं वोही हूँ जिसे तुम प्यार किया करते थे दिन में सो बार मेरा नाम लिया करते थे क्या बात है ...कियूं मुझ से खफ्फा बेठे हो किया किसी और को दिल अपना दे बेठे हो फासले तो पहले ना हुआ करते थे ऐसे मैं वोह हूँ जिसपे तुम एतबार किया करते थे मुझ को मालूम है ये गम है कोई सोगातनहीं तुम्हे मै अब अपना कहू ऐसे भी हालात नहीं और अगर भूल गए हो तो कोई बात नहीं ज़ख़्म तो पहले भी इस दिल पे तुम लगाया करते थे मैं वोही हूँ जिसे तुम प्यार किया करते थे दिन में सो बार मेरा नाम लिया करते थे
एहसासों का कोई रूप नहीं होता.. जज्बातों की कोई शक्ल नहीं होती.. यूंही चलती जाती है जो बेमतलब सी.. वो ज़िन्दगी कोई ज़िन्दगी नहीं होती.. धुल भरी राहों पे चलके क़दमों ने है जाना.. हर एक राह की कोई मंजिल नहीं होती.. ना जाने कितनी सांसें बंद कमरों में हैं घुटती.. सांस लेना ही तो बस ज़िन्दगी नहीं होती.. मेरी आँखों से छलकता है कभी उनके दर्द का पानी.. जिनकी आँखों के रेतीले मरू में नमी नहीं होती.. धन्य है उनकी सहनशक्ति तो सही जाए हैं.. कभी किसी चोट पे उनके मुह से ‘उफ़‘ भी नहीं होती.. मेरे गुनाहों को गिनाने वालों थोडा सब्र करो.. नियति के घर देर है पर अंधेर नहीं होती.. जाने कैसी हैं ये ख्वाहिशें जीने की ,जीते जाने की.. आँखें सच देख के भी नहीं सोतीं..