बादलों के दरमियन कुछ ऐसी साजिश हुई..
मेरा मिट्टी का घर था वहीँ बारिश हुई..
फलक को आदत थी जहाँ बिजलिया गिराने की..
हमको भी जिद थी वहीँ आशियाना बनाने की
मेरी तम्मनाये करे कब तक इंतजार कोई भी दुआ इसे गले क्यों नही लगती, अगर हो जाती मुरादें पल मैं पुरी .... तो मुरादें नही ख्वाहिसे कहलाती....