Tuesday, August 26, 2008

स्वपन एक सुन्दर घर का...!





मैने देखा था स्वपन एक सुन्दर घर का,
बनाते हम तुम मिल कर जो,
जैसे प्रेम नीद मै,प्रेमी दो ,
अपना जहाँ सुन्दर होता, जिसमे हम रह पाते तो,
तुम मेरे संग , मै तुम संग,
दिल की बात कह पाते तो
मै राह निहारती, तुमारी प्रेम पथ पर
तुम काम से थक कर आते तो,
मै भी थकी हरी सी, हस्ती,
तुम भी कुछ मुस्काते तो,
सारी पीरा तुम मुझ से, हम तुम से कह पाते तो,
उही जिन्दगी गुजरती अपने सव्प्नो के घर मैं,
जिन्दगी के एक पड़ाव पैर तुम हम मुकुराते तो..

पलक

2 comments:

Anonymous said...

really awesome yaar... superb wording... i really love this post...
Pearl....

Anonymous said...

सुखद स्वप्न की स्मृति पीछा करती है। बार-बार मन उसे फ़िर से पाना चहता है। शायद ऐसी ही मनोदशा में कविता ने शब्दों का रूप ले लिया है।