पल-पल हर पल की आहट मे खामोश सा है
हम से है अलग पर इन साँसो से कुछ जुड़ा सा है
धीमे-धीमे गिरते वक्तपर रफ्तार का अहसास सा है
हर थमी बातो मे साथ छोड़ते अल्फाज़ का अह्सास सा है…
चाँद तो आता है नज़र पर इसमे यह सूरज खो गया क्यो है
आँखो मे बसे है चेहरे पर अपना ही अक्स छुपा क्यो है??
कही भूला,कही छुट सा गया है मुझसे
थोड़ा ठहरा, थोड़ा सहमा हूँ इससे
हर रात के लिए रोशन है कुछ दिये
बुझे चिरागो से ढूढूगा किसे
पर यह रोशनी ही तो अंधेरे का सबब है
इन्ही परछाइयो का तो रूह को समझ है
नज़रो को ढूढती पैरो के निशान
जब सेह्रा मे साहील का हुआ था गुमान
कही तो साहील होगा इस सागर के पार
शायद इसलिए है इन यादो को…
और थोड़ा…थोड़ा और इंतज़ार…
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