Wednesday, September 10, 2008

चाँद और चांदनी......!


एक चाँद की सहेली
मेरी भी सहेली
बड़ी इठ्लाये अपने पीया पे
देख देख उसे
ज़लाये-चिडाये
इक दिन पूछा मैंने
ऐसा कया उसमे?
लगी इतराने ....
पिरोई उस ने तारीफों की लड़ी
सुन सब, मैंने
अंगूठा दिखलाया और कहा ....
अरी, बड़ा दूर वो तुझ से
न जाने कितनों का सजन, तेरा सनम
मेरा 'माही' तेरे चाँद से कितने पास मेरे
दिन -रात, हर पल संग रहता मेरे
कोई नहीं देखे उसे मेरे सिवा
बस 'माही' मेरा ....मेरा ही रहे
हमेशा के लीए .....
तब वो इठला के बोली
चाँद मेरा हमदम
मेरा दोस्त
मेरी जिन्दगी है
हा वो दूर है मुज से
पर इतना पास है
जितना किसी का सजन ना होगा
दुरिया हमरी प्यार कम नही करती
हमें और पास ले आती है
चाँद और मैं .... हम सच्चे चाहने वाले है

वो चाँद मै चांदनी बनी उस की ....
वो चाँद मेरा " माहि" है ... मेरा यार है.. मेरी आत्मा है .....

Tuesday, September 9, 2008

ARMAN HAI TUM SE ....!


Mujhe Chanda Kaho , Jaan Kaho
Mujhe Apne Dil Ka Mehmaan Kaho
Mujhe Dekho Her Lamha Yunhi
Mujhe Tum Apni Pehchaan Kaho
Mai Puri Karoo Tumhari Her Khawahish
Mujhe Tum Apna Maan Kaho



Her Haal Mai Tum Mujh Ko Hi Socho
Mujh Se Dil Ka Her Armaan Kaho
Her Lamha Tum Ko Hi Chahoon Mai
Mujhe Pyaar Ki Tum Apni Shaan Kaho



Mere Dil Ki Dharti Tumhari Hi Hai
Us ko Zameen Kaho, Aasman Kaho
Her Azooo Ko Meri Zuban Keh lo
Tumhari Dunia Mai Khoyi Rehti Hun
Mujhe dulhan tumhari dil ki anjan Keh lo



Rakhoon Door Her Shaher Ko Tum se
Mujhe Dost Kaho, Negebaan Keh lo
inayat Pyaar Ki Apni De Do
chahay pyar ki pehchan keh lo...
पलक



Monday, September 8, 2008

ज़िन्दगी ...!



ना कांटों का है दामन ना फुलों कि सेज सुहानी है,
ज़िन्दगी तो बस नदी सा बहता पानी है....
ना रुकी है पल को भी किसी क रोके,
रफ्तार उसकी तुफानी है.....

ज़िन्दगी और कुछ नही बस बहता पानी है ......

चली थी पहाड़ से हौले से तो बचपन,
लगी इठलाने तो जवानी है ....
हुई धीमी जो सागर मे मिलने से पहले,
तो बुढ़ापे कि भूली सी कहानी है...
ज़िन्दगी और कुछ नही बस बहता पानी है

पल भर को बिखरती है झरने से गिर कर,
फिर समेट के खुद को ,वोह आगे बड़ जानी है....
लाख रोको उसको बाँध बाना कर,
मोत् के सागर मे इक दिन मिल ही जानी है ....
ज़िन्दगी और कुछ नही बस बहता पानी है.....
Palak

Sunday, September 7, 2008

निशनी रह जायेगी....


मेरी यादों मैं, एक अनकहीं कहानी रह जायेगी
कुछ पलो मैं बीती , सारी जिन्दगी रह जायेगी
कुछ पल मैं चल पाउगी , एक कहानी बनकर
तमाम उमर तेरी नजरो मैं एक निशानी रह जायेगी
ज़ख्मो का हिसाब तो हमेशा ही बेहिसाब रहेगा
कम से कम ये आंखे तुम्हे नमी दे जायेगी
ये महफिलों की दुनिया कर जाउगी नाम तेरे...
फ़िर भी तेरी जिन्दगी मैं एक तन्हाई रह जायेगी ....


palak

Thursday, September 4, 2008

अमानत.....


सुर्ख सी खुशी है... नादान सी जरुरत...
धीरे धीरे सासों को भी हो चुकी एक मुद्दत .....
असमानों के परे ...कही खिल रहा एक फूल ....
कैसे कह दू की क्या है वो...
अगर कह दू.. तो तुम हो ....अगर न कुछ तो नजाकत हो.....
वो कदमो पर तेरा यु कदम रख कर चलना .........
थोडी अनकही.. थोडी शोख... कुछ रूठी.. कुछ सहमी....
हर आरजू की एक छोटी सी एक चाहत ...........
चाहत के धागे का वो एक सिरा ... मैंने अपने दिल से बाँध रखा....
और सहज कर रखा है तेरी वो नजदीकियों की अमानत.....


.......पलक.......

Tuesday, September 2, 2008

आग का दरिया....

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हसीं लम्हों का सूनापन
उल्जा उल्जा सा मेरा मन
कभी भूल नही पाउगी मैं तुम्हे
पानी का वो मौज तक आना
हर साँस को गीला कर जाना
कही पर छोड़ आई हु मैं
यादों के सफर पीछे रह गए और.......!!!!!
कल साथ ले आई हु मैं
बयां करू मै कोन सा ख्याल
बेचैन दिल से किया सवाल
मेरे पास तो रह गया है सिर्फ़
शब्दों का जरियां ..
एक पल मै जी आई हु मैं
तेजाब की बूंदे बारिश मै कल
जलाये आखों मैं वो हसीं पल
न रोक सही कल मैं उसे
रत भर सुलगती रही ऐसे ही उस मैं
जाने फिर कब ऐसे बरसात हो
याद रहेगा उमर भर वो
वो बारिश ...
वो बूंदे ...
वो पानी.....
और वो....आग का दरिया....






palak

Monday, September 1, 2008

उस से कहना की..........



उस से कहना किताबों मैं रखे सुखे हुए कुछ फूल उस के लौट आने का यकीं अब तक दिलाते है ,
उस से कहना उस की जील सी आंखे किसी मंज़र पर छा जाए तो सब मंज़र युही भीग जाते हैं ,
उस से कहना ठंडी बर्फ पर कोई किसी के साथ चलता है तो दिल फ़िर से उन क़दमों के निशान से उसी के लौट आने की उम्मीद करता है ...
उस से कहना उसकी भीगती आखों का वो आसू सितारे की तरह अब भी हमें शब् भर जगाता है ,
उस से कहना के बारिश आज भी उन खिड़की पर बूंदों से उस का नाम लिखती है ,
उस से कहना की खुशबू, चांदनी तारे , रास्ते , घटा, काजल ,शबनम, हवाएं , रात और दिन, बादल ये सभी नराज़ है ....उस से कहना जुदाई के रिश्तों पर जो सूखी टहनियां है वो सारी बर्फ की चादर मैं कब की ढक चुकी है ....
उस से कहना की शाखों पर जो पत्ते थे वो अब सुनहरे हो चुके है ....
उस से कहना की..........
बस अब लौट आए .......
मेरे पास लौट आए... ...


पलक