मेरी भी सहेली
बड़ी इठ्लाये अपने पीया पे
देख देख उसे
ज़लाये-चिडाये
इक दिन पूछा मैंने
ऐसा कया उसमे?
लगी इतराने ....
पिरोई उस ने तारीफों की लड़ी
सुन सब, मैंने
अंगूठा दिखलाया और कहा ....
अरी, बड़ा दूर वो तुझ से
न जाने कितनों का सजन, तेरा सनम
मेरा 'माही' तेरे चाँद से कितने पास मेरे
दिन -रात, हर पल संग रहता मेरे
कोई नहीं देखे उसे मेरे सिवा
बस 'माही' मेरा ....मेरा ही रहे
हमेशा के लीए .....
तब वो इठला के बोली
चाँद मेरा हमदम
मेरा दोस्त
मेरी जिन्दगी है
हा वो दूर है मुज से
पर इतना पास है
जितना किसी का सजन ना होगा
दुरिया हमरी प्यार कम नही करती
हमें और पास ले आती है
चाँद और मैं .... हम सच्चे चाहने वाले है
वो चाँद मेरा " माहि" है ... मेरा यार है.. मेरी आत्मा है .....