Monday, January 17, 2011

क्या हो तुम...!!!!!



तुम क्या हो ?
मेरी मुस्कुराती शायरी के लव्ज़ हो तुम
ख्वाबों के मंज़र का खिलता गुलाब हो तुम
महक रही है फिजा भी छू कर
किसी चमन में आई वो बहार हो तुम.

अधूरी है मेरी हर नज़्म तुम्हारे बिना,
मेरी ग़ज़ल का वो आखिरी अल्फ़ाज़ हो तुम
जिंदगी क हर मोड़ पर जिसे पाने की हसरत हे,
वक़्त का वो खूबसूरत लम्हात हो तुम;
कितनी फीकी थी इन लबों की हसी तेरे बिना

मेरे लबों पर खिली वो मुस्कान हो तुम;
सींचा हे जिस से मेने इस वीरान चमन को,
मेरी आँखों से छलकता वो जाम हो तुम,
क्या नाम लेकर पुकारूं तुम्हे
मेरी थमती सांसों की आखिरी शाम हो तुम..

4 comments:

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुन्दर रचना है ... दरअसल साथ साथ रहते रहते एक ऐसा रिश्ता बन जाता है जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है ...

संजय भास्‍कर said...

वाह... कितनी खूबसूरती से जज्बातोँ को उकेरा आपने दी। उत्कृष्ट, भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत आभार।

Raj said...

Palak....

Aapke andaaz ka kya kehna! bahut sundar likha hai aapne....Ishwar aapko yuhi 'prerna' deta rahein likhne ki.....yehi 'Aarjoo' hai....

सहज समाधि आश्रम said...

बहुत सुन्दर कविता , पलक जी । आपका 4 ब्लाग bolg world .com में जुङ गया है ।
कृपया देख लें । और उचित सलाह भी दें । bolg world .com तक जाने के
लिये सत्यकीखोज @ आत्मग्यान की ब्लाग लिस्ट पर जाँय । धन्यवाद ।