तुम क्या हो ?
मेरी मुस्कुराती शायरी के लव्ज़ हो तुम
ख्वाबों के मंज़र का खिलता गुलाब हो तुम
महक रही है फिजा भी छू कर
किसी चमन में आई वो बहार हो तुम.
अधूरी है मेरी हर नज़्म तुम्हारे बिना,
मेरी ग़ज़ल का वो आखिरी अल्फ़ाज़ हो तुम
जिंदगी क हर मोड़ पर जिसे पाने की हसरत हे,
वक़्त का वो खूबसूरत लम्हात हो तुम;
कितनी फीकी थी इन लबों की हसी तेरे बिना
अधूरी है मेरी हर नज़्म तुम्हारे बिना,
मेरी ग़ज़ल का वो आखिरी अल्फ़ाज़ हो तुम
जिंदगी क हर मोड़ पर जिसे पाने की हसरत हे,
वक़्त का वो खूबसूरत लम्हात हो तुम;
कितनी फीकी थी इन लबों की हसी तेरे बिना
मेरे लबों पर खिली वो मुस्कान हो तुम;
सींचा हे जिस से मेने इस वीरान चमन को,
मेरी आँखों से छलकता वो जाम हो तुम,
क्या नाम लेकर पुकारूं तुम्हे
सींचा हे जिस से मेने इस वीरान चमन को,
मेरी आँखों से छलकता वो जाम हो तुम,
क्या नाम लेकर पुकारूं तुम्हे
मेरी थमती सांसों की आखिरी शाम हो तुम..
4 comments:
बहुत सुन्दर रचना है ... दरअसल साथ साथ रहते रहते एक ऐसा रिश्ता बन जाता है जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है ...
वाह... कितनी खूबसूरती से जज्बातोँ को उकेरा आपने दी। उत्कृष्ट, भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत आभार।
Palak....
Aapke andaaz ka kya kehna! bahut sundar likha hai aapne....Ishwar aapko yuhi 'prerna' deta rahein likhne ki.....yehi 'Aarjoo' hai....
बहुत सुन्दर कविता , पलक जी । आपका 4 ब्लाग bolg world .com में जुङ गया है ।
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