उस कि याद मै गुज़रति मेरी हर शाम थी
मेरे दिल से निकलि हर दुआ उस के नाम थी
अब मुजे इल्ज़ाम् न दो बेवफा का यारो
मेरे हाथो कि लकिरो मै वफ़ा आम थी
क़दर् पूछो उनसे जो करते है महोब्बत कि पूजा
सिर्फ़ उसके शेहेर मै मोब्बत मेरी बदनाम थी
मेरे दिल से निकलि हर दुआ उस के नाम थी
अब मुजे इल्ज़ाम् न दो बेवफा का यारो
मेरे हाथो कि लकिरो मै वफ़ा आम थी
क़दर् पूछो उनसे जो करते है महोब्बत कि पूजा
सिर्फ़ उसके शेहेर मै मोब्बत मेरी बदनाम थी
palak
4 comments:
awesome !!
just a few words......in saluting ur writing...
Your absence has gone through me
Like thread through a needle !
Everything I do.... is stitching with its color !!
www.rockwithking.blogspot.com
awesome
Beautiful as always.
It is pleasure reading your poems.
Lamho ko jodkar..sabdo ko chunkar...ehsaash ko kavita me dhala hai aapne palak....bahut sundar likha hai....is rachna ko padk kar ek gaana yaad aa gaya.....
"pyaar hum ko bhi hai..pyaar tumko bhi hai to kyun yeh silsile ho gaye"
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