Tuesday, May 26, 2009

वोह कुछ...!!!!



वोह कुछ जो ना तुमसे कहना था
वोह जो अधुरा रहना था
वोह तुम अब भी ना समझ सके
दिल में रहकर भी वोह अलग रहे

तुमने मुझे शब्दों में बंधना चाह
मैंने तो सिर्फ़ तुम्हे चाह
यह दिल की लगी भी ऐसी थी
इस आग में मुझको जलना था

जीवन के किनारों में तुम्ही थे
में लहर बनी पर सिमट ना सकी
तुम पास मगर बहुत दूर रहे
में ओस बन बिखर ही गई

सांसे है कमजोर मन है विकल
यांदो में तुम आए पल ... विपल
वोह कुछ तोड़ गए हमें ...कुछ टूट गया
वोह सपना नही दिल अपना था…


पलक

2 comments:

Dr. Ravi Srivastava said...

बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति है....

मौत की आरजू भी कर देखूं ,
क्या उमीदें थी ज़िन्दगी से मुझे।
फिर किसी पर न ऐतबार आए,
यूँ उतारो न अपने जी से मुझे॥

...Ravi

raaaj said...

... फिरसे अफसाना लिखेंगे अपना, जो बीत गया वोह कल है। तेरी सांसो की खुश्बुसे महेकता, ... ख़ुद तो कोई ख्वाब नही देखती, मुझे सपने दिखाती है ....