शून्य मै फ्हिला हुआ एक पल
जीवन पर्व सा ठहरा हुआ
गगन भेदी यह भावना
शब्दों को नकारता यह भावना का पल
शब्द क्यों ठहरे ..?
मानव की उपलब्धी है ये
शब्द जाल है तो है ये कभी माला पर वों पल वही है
अम्बर सा स्थिर..
शब्द क्या कराय उसे अलंकृत
वोह पल... एक शब्द नहीं ..
एक अनुभूति है ...!!!
जीवन पर्व सा ठहरा हुआ
गगन भेदी यह भावना
शब्दों को नकारता यह भावना का पल
शब्द क्यों ठहरे ..?
मानव की उपलब्धी है ये
शब्द जाल है तो है ये कभी माला पर वों पल वही है
अम्बर सा स्थिर..
शब्द क्या कराय उसे अलंकृत
वोह पल... एक शब्द नहीं ..
एक अनुभूति है ...!!!
3 comments:
Very touching poem...!
पलक जी, नमस्ते,
आज बहुत इन्तिज़ार के बाद आप के दर्शन हुए ख्वाहिश में ...
देर से ही सही लेकिन आई तो कुछ अच्छा ही लिखा. लगता है आप अपने दोस्तों को भूल गयी थी. है न...?
कुछ नज़्म पेश हैं आप के लिए...
एक सवाल है ज़हन में,हर वक्त रहता है,
कैसे कहू उसे मुझे जो दोस्त कहता है।
तू है मेरे लिए एक दोस्त से भी ज़्यादा,
हर दम दोस्ती निभाने का है मेरा इरादा।
कुछ बात है मेरे दिल में पर लफ्जों की कमी है,
आंखों में पढ़ के देख ले एक शरारत सी बनी है।
कोई डर सा बना है दिल में नही साथ यह जुबां,
खो न दूँ यह दोस्ती कर के हाल-ऐ-बयान॥
आज ऐसी ही एक अनुभूति की याद ताजा हो आई तो इसे एक पोस्ट के रूप में इस अनुरोध के साथ पेश कर .... से आप कह पाते हैं, मुझे कहते समय शब्द नहीं मिल पाते… सिर्फ एक आनन्दमयी अनुभूति है बस. ...
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