Wednesday, January 7, 2009

कुछ सवाल कुछ अनकहे जवाब ...

पल ही ऐसा था की हम इनकार न कर पाए…
ज़माने के डर से इकरार न कर पाए…
न थी जिनके बिना ज़िन्दगी मुनासिब…
छोड़ दिया साथ उन्होंने और हम सवाल तक न कर पाए…
एक सवाल का ही दायरा था..
हम पार कर न सके....
जो हो गए थे मन् ही मन् हमारे...
चाहकर भी उन्हें इजहार कर न सके..
तकदीर में था ही बिछड़ना हमे..
सोच कर कभी आगे बढ न सके...
आज भी मुकाम है उनका इतना ..
चाहकर भी आजतक नज़रे उठा न सके.
पाने से खोने का मजा और है..
बंद आंखों में रोने का मजा और है..
आंसू बने ग़ज़ल और इस ग़ज़ल में आप के होने का मज़ा कुछ और है...
खोज सको तो खोज लो अपने आप को मेरे शब्दों मैं
सिर्फ़ आप का ही नाम बिखरता जाता है
पलक

2 comments:

Dr. Ravi Srivastava said...

पढ़कर ऐसा लगा, जैसे ये लाइनें मेरे लिए लिखी हैं आपने..... लेकिन जो भी हो, दिल को छू गयी... पलक, कृपया मेरी पत्रिका पर भी एक नज़र डालें.
www.meripatrika.co.cc

Satya said...

khud meri jholi me lafjo ke moti dal deta hai,agar kuch aur magu to hans ke tal deta hai