Wednesday, June 17, 2020

जय हिंद

चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम, आज उनकी जय बोल।

जो अगणित लघु दीप हमारे
तूफानों में एक किनारे,
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन
माँगा नहीं स्नेह मुँह खोल
कलम, आज उनकी जय बोल।

पीकर जिनकी लाल शिखाएँ
उगल रही सौ लपट दिशाएं,
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल
कलम, आज उनकी जय बोल।

अंधा चकाचौंध का मारा
क्या जाने इतिहास बेचारा,
साखी हैं उनकी महिमा के
सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल
कलम, आज उनकी जय बोल।

Sunday, June 14, 2020

sushant❤️


                          कुरेदती होगी अंदर से शाय़द ,
                      वरना सांसो से कौन तौबा करता है !


Friday, May 15, 2020

खुद ही मुस्कुराना है
खुद के ही आंसू पोछना है
खुद का हाल भी पूछना है
खुद को ही बहलाना है
कभी मंद मंद
कभी चमक चमक
खुद ही खुद को हंसाना है
खुद ही खुद का फसाना भी है..


Monday, April 20, 2020

कोशिश थी हवाओं की
हमें पत्तों की तरह उडाने की,
साजिश थी ज़माने की
हमें हर वक्त आजमाने की,
साथ किसी का मिल न सका कभी,
पर आदत हमारी थी हर बार जीत जाने की.
यकीन था ख़ुद पर,
कुछ कर गुजरने की ठानी थी,
दीवानगी जो थी मंजिल को पाने की,
उसे जूनून अपना बनाने की
आदत हमारी थी.
राह जो चुनी थी हमने अपनी,
हर मोड़ पर मिली मुश्किलों की सौगात थी,
हर छोर पर गुलशन खिला दिए हमने,
कांटो से भी यारी की,
आदत हमारी थी.
ढल चुका था सूरज,
अब चाँद से मुलाक़ात की बारी थी,
ख्वाब जो देखे थे इन बंद आंखों ने,
हकीक़त उन्हें बनाने की,
आदत हमारी थी.

Friday, April 10, 2020

हम होंगे कामयाब


           ફરી છાસ વલોવી ને માખણ માંથી ઘી બન્યું,
                ને બઝાર નું બટર ને ચીઝ બંધ થયું.

                  ફરી દાળ પલાળી ને ખીરું બન્યું,
                  ને બઝાર નું વાસી ખીરું બંધ થયું.

                ફરી ઘઉં ને બાજરા ના રોટલા બન્યા,
                ને બઝાર ના પાંઉ ને પીઝા બંધ થયા.

                      કોણ કહે છે કે આ રોગ છે,
                આ તો નીરોગી રહેવાનો સંજોગ છે.

Friday, February 14, 2020

तू नज़्म नज़्म सा मेरे, होठों पे ठहर जा
मैं ख़्वाब ख़्वाब सा तेरी, आँखों में जागु रे...

 तुमको चुराकर ले चलूँ कहीं दूर,
 किसी ऐसी जगह जहाँ न कोई  शोर हो, न कोई खलेल.. 
बस एक पहाड़ी, 
पहाड़ी के पास वो बहती नदी, 
बहती नदी के किनारे वो एक बड़ा सा पत्थर,
 उस पत्थर पर बैठें हुए हम दोनों.. 
वो छल-छल  बहता पानी,
 वो सूरज से आती सुबह की किरणें, 
वो किरणों से चमकता नदी का पानी.. 
वो आसमाँ में उड़ते पंछी, 
वो पानी में तैरतें हुए बतक और मछलियां, वो पत्थर से टकराकर हमें छूती हुई शीतल जल की बूंदें, 
वो पहाड़ीयों को काटकर आती हुई बदन को छूती हुई ठंडी हवाएं, 
चारों ओर हज़ारों रंग भरते हुए नज़ारें.. 
न कोई देखने वाला, 
न कोई सुनने वाला,
 वो हमारे बीच की खामोशी, 
उन खामोशी में अंगड़ाइयां लेती हुई हज़ारों बातें 
और हर बात को अंजाम देते हुए ये चंद लब्ज़..

"तू इश्क-इश्क सा मेरे रूह में आ के बस जा, जिस ओर तेरी शहनाई उस ओर मैं भागूं रे..." 


Sunday, January 26, 2020


अच्छा लगता है मुझे ...
रात की शिकायतो को जब  सुबह तुम अपनी आंखों से जताती हो .....
अच्छा लगता है मुझे ...
रात के बिखरे काजल को मैं थोड़ा और बिखेर देता हूं ....
अच्छा लगता है मुझे ...
सुबह जल्दी जल्दी में सँवारे बालो को मैं फिर  खोल देता हूं...
अच्छा लगता है मुझे ...
तेरे वजूद में खुद के होने का अहसास ....