Thursday, August 18, 2011

के तुज से मैं बहोत प्यार करती हु ......


यु ना बुरा मान अगर 
" तुज को मैं  प्यार करती हु "

ये तोह बता गुनाह कोन सा ऐसा 
" मैं यार करती हु "

मेरी खताओं मैं
मेरी समज का
" नहीं कोई दखल "

मैं जो भी करती हु
"बे - इख्तियार करती हु"

तू कितने प्यार के काबिल है 
" क्या खबर मुज को "

के मैं तो जितना भी मुमकिन हो 
" सिर्फ तुजे ही प्यार करती हु "

खुदा की दुनिया से इतनी 
"महोब्बत नहीं है शायद "

खुदा के एक बंदे को मैं
"बे इंतहा प्यार करती हु "

6 comments:

Neelkamal Vaishnaw said...

नमस्कार....
बहुत ही सुन्दर लेख है आपकी बधाई स्वीकार करें

मैं आपके ब्लाग का फालोवर हूँ क्या आपको नहीं लगता की आपको भी मेरे ब्लाग में आकर अपनी सदस्यता का समावेश करना चाहिए मुझे बहुत प्रसन्नता होगी जब आप मेरे ब्लाग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँगे तो आपकी आगमन की आशा में........

आपका ब्लागर मित्र
नीलकमल वैष्णव "अनिश"

इस लिंक के द्वारा आप मेरे ब्लाग तक पहुँच सकते हैं धन्यवाद्
वहा से मेरे अन्य ब्लाग लिखा है वह क्लिक करके दुसरे ब्लागों पर भी जा सकते है धन्यवाद्

MITRA-MADHUR: ज्ञान की कुंजी ......

Dev said...

मन के भावों बहुत कोमलता से प्रस्तुत किया है आपने ...बहुत खूब

Raj said...

Kisi ko chahte rehna koi KHATA to nahi.....

एक स्वतन्त्र नागरिक said...

जरा एक और मुद्दे पर पढ़ें और कृपया अपनी राय अवश्य दें. सचिन को भारत रत्न क्यों?
http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com

Anonymous said...

वाह - बहुत खूब

Palak.p said...

Neelkamal ji, Devesh ji, Raj ji, rakesh ji aur wo sabhi jis ne ye rachna padhi hai aur sarahi hai.. sab ko meri taraf se Dhaywad..

Palak