Friday, August 5, 2011

मुझे सिर्फ इंसान रहने दो ....!!

ना दो मुझे कोई पहचान 
मुझे सिर्फ इंसान रहने दो 
मज़हब की जरूरत होगी तुमको 
मुझे तो अब बेदाग़ रहने दो 

खुदा के बन्दों को अब 
ना कोई  नाम की जरुरत है 
हर शख्स को जीने के लिए 
अब तो सिर्फ सुकून की जरुरत है 

मजहब  को  मेरा  अब 
अपना  मामला  रहने  दो  
ना दो मुझे कोई पहचान 
मुझे सिर्फ इंसान रहने दो 

ख्वाब फिर सजा है आखों मैं 
धरती को जन्नत बन ने के 
न डालो फिर से ज़हर 
न घोलो रंग खुदगर्जी के 
इन्हे इस बार तुम बेरंग ही रहने दो 
मुझे सिर्फ इंसान रहने दो 

सरपरस्ती के शौखीन तुम से है गुज़ारिश 
कर सको तो इतना एहसान कर दो 
छोड़ दो अपने हाल पर लोगो  को 
इन्हे  ईमान पर  सिर्फ जिन्दा रहने दो 

न दो मुझे कोई पहचान 
मुझे सिर्फ इंसान रहने दो 

1 comment:

Neelkamal Vaishnaw said...

नमस्कार....
बहुत ही सुन्दर लेख है आपकी बधाई स्वीकार करें

मैं आपके ब्लाग का फालोवर हूँ क्या आपको नहीं लगता की आपको भी मेरे ब्लाग में आकर अपनी सदस्यता का समावेश करना चाहिए मुझे बहुत प्रसन्नता होगी जब आप मेरे ब्लाग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँगे तो आपकी आगमन की आशा में........

आपका ब्लागर मित्र
नीलकमल वैष्णव "अनिश"

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