Tuesday, July 22, 2008


कुछ दूरियाँ है हमारे तुम्हारे बीच , कुछ पलों की, कुछ ख़यालों की , कुछ बातों की , कुछ सवालों की, फिर भी हम अजनबी नही ऐसा क्यों? कुछ तो है ... न जाने कुछ तो है ...कुछ तो है...... पलक ....

खामोशियाँ

खामोशियाँ है तो खामोश पर एक अनसुनी ज़बान में हर बात बोलती है , यह आँखें इसका साथ देती है और हर राज खोलती है , हम हर बार यह चाहतें है की किसी को सुनाई ना दे यह पर यह है की हर वक़्त मेरी तनहाइयों में चली आती है और कहती है वो बात जो दुनिया के शोर मे खो जाती है . बस खो जाती है ...... palak

Sunday, July 20, 2008

प्यार की रस्म


बैठे रहो मेरे पास
ना जाओ कंही आज
इन आखरी पलो का साथ
तुम्हारी सांसो का एहसास
जी लेने दो अपना यह प्यार
फिर बिखर जायगी,इक काली रात
ना छोडो मेरा हाथ
कुछ पल बाद आप छुट जाएगा साथ
बह जाने दो अपने ज़सबातो को
फिर कौन सुनेगा, मेरे जाने के बाद
ऐसे ना छुपाओ अपनी भीगी पालकी
ना पौछेंगा कोई, मेरे बाद
देखो उस चाँद को, वो सब जानता है
कैसे हममे जुदा होते, तक रहा है
जब आयेगी तुम्हे मेरी याद
तुम भी ऐसे ही चाँद को तकना
मैं काले अम्बर पर भागती आऊंगी
हवा बन तुमसे लिपट जाउंगी
अपने प्यार की रस्म मरकर भी निभाउंगी...................

Saturday, July 19, 2008

पहचान


मेरी तुमसे और तुमसे मेरी
पहचान कया है ?

किस रिश्ते को
दोनों दूर होकर भी
निभाते है?
धरती - नभ को जोड़ने वाला
इक क्षितीज है
चाँद -तारो को मिलाने वाला
इक आसमान है
मेरे-तेरे बीच बस
एक मन का तार है

एक आत्मा का तार है ....





Thursday, July 17, 2008

Chand ki tarah pyar bhi...

chaand

Humne mehboob ki aankhon par
Haathon ko apne rakh kar dekha…
Nafraat ke aangaaro ko jab unkii
Nazaron mey dehekta dekhaa….
Aur Unhii haathon ko dil par rakh kar,
Apnii Hasraton ko khud apnii Aankhon se Jaltaa dekhaa…
Chand ki tarah humne Pyar ko bhi marrtaa dekha…

Ek ajnabii si nazar deewar ko bhedtii hui,
Ek ukhdii hui saans jigar ko chedtii huii…
Khud ki talaash mey bhatak rahii hai ruhh,
Do pal ka bhii nahin jaise mere naseeb mey sukoon…
Ghar ke saajo-samaan ko khud par Humne haste dekha…
Apne Wajood ko bhi sajawat ka saamaan Bante dekha…

Harr rishte par ek maut khud ki paayii hai,
Bazaar mey jaise bolii khud apni lagayii hai…
Koii zeher jaise apne haathon pee liya humne,
Zehar pee ke bhee magar kaise jee liya humne…
Khulii aankhon sey kaisa khaufnaak yeh sapnaa dekha…
Kaii Zehreele naagon ko kadmon sey lipatt.tey dekha…

Ek hi manzar yeh har raat ka hota hai,
Chand bhi aakar meri chhatt pe rota hai…
Palkon mey namii hoti hai bikhrii bikhrii…
Dil phir bhi nayii umeed koi pirotaa hai…
Woh toh takkiye ko aangosh mey le lete hai,
Jaane kaise woh chain ki neend so lete hai…
Raat ki raani ko kabhii khidkii pe Mehekta dekha…
Humne raaton ko aankhon aankhon mey guzartaa dekhaa…
Palak

Tuesday, July 15, 2008

ख्वाहिश है कुछ यु तुज से मिलु कभी



ख्वाहिश है कुछ यु तुज से मिलु कभी मैं
हो सारी दुनिया सोई ..बस जगे हो तुम और मैं
फर्क क्या मुझे हो जो उस रात ना निकले चाँद
दिखता हैं यु भी तेरा चेहरा चाँद मैं मुझे


तुम धीरे से कुछ कहते कहते रुक जाओ
और फिर रात से कहो एक पल के लिए थम जाओ
वक्त भी थम जाए उस दिन सुन ने को तुम्हे
फ़िर अपनी किस्मत पे क्यों ना इतराऊं मैं

मैं तुम्हे बस रात भर देखती रहू
तुम्हारी आँखों में हर पल और ज्यादा डूबती रहू
तुम्हारे बातें सुन बज उठे है सारे एहसास
उस एहसास मै रात भर क्यों ना रहू मैं

और भी क्या जाने हर पल सोचती हु मैं
क्यों दीवानी की तरह तुम्हे चाहती हु मैं
जानती हु ये सब कभी मुमकिन नही पर फ़िर भी
ख्वाहिश है कुछ यु तुजसे मिलु कभी मैं ..पलक...


एक खवाब


आ असमान से नीद का सौदा करे, एक खवाब दे एक ख्वाब ले...
एक ख्वाब जो आखों मैं है , आ उसको पुरा करे ....
शर्म को तेरी आगोश मैं पिघलने भी दे ...
बोलके हल्के हल्के कानो मैं मेरे
सांसों को उलझा दे मेरी सांसों से
दो लफ्ज़ थे ..एक बात थी.. उमर लगी तेरी खामोशियों को बोलने मैं …
सौ साल का वो एक पल था .. उस पल मैं पुरी सदियाँ बिता दें ....
आ असमान का चाँद से सौदा करे रोशनी से भर दे अपना जहाँ .... पलक .....