
कुछ दूरियाँ है हमारे तुम्हारे बीच , कुछ पलों की, कुछ ख़यालों की , कुछ बातों की , कुछ सवालों की, फिर भी हम अजनबी नही ऐसा क्यों? कुछ तो है ... न जाने कुछ तो है ...कुछ तो है...... पलक ....
मेरी तम्मनाये करे कब तक इंतजार कोई भी दुआ इसे गले क्यों नही लगती, अगर हो जाती मुरादें पल मैं पुरी .... तो मुरादें नही ख्वाहिसे कहलाती....
बैठे रहो मेरे पास
ना जाओ कंही आज
इन आखरी पलो का साथ
तुम्हारी सांसो का एहसास
जी लेने दो अपना यह प्यार
फिर बिखर जायगी,इक काली रात
ना छोडो मेरा हाथ
कुछ पल बाद आप छुट जाएगा साथ
बह जाने दो अपने ज़सबातो को
फिर कौन सुनेगा, मेरे जाने के बाद
ऐसे ना छुपाओ अपनी भीगी पालकी
ना पौछेंगा कोई, मेरे बाद
देखो उस चाँद को, वो सब जानता है
कैसे हममे जुदा होते, तक रहा है
जब आयेगी तुम्हे मेरी याद
तुम भी ऐसे ही चाँद को तकना
मैं काले अम्बर पर भागती आऊंगी
हवा बन तुमसे लिपट जाउंगी
अपने प्यार की रस्म मरकर भी निभाउंगी...................
Humne mehboob ki aankhon par
Haathon ko apne rakh kar dekha…
Nafraat ke aangaaro ko jab unkii
Nazaron mey dehekta dekhaa….
Aur Unhii haathon ko dil par rakh kar,
Apnii Hasraton ko khud apnii Aankhon se Jaltaa dekhaa…
Chand ki tarah humne Pyar ko bhi marrtaa dekha…
Ek ajnabii si nazar deewar ko bhedtii hui,
Ek ukhdii hui saans jigar ko chedtii huii…
Khud ki talaash mey bhatak rahii hai ruhh,
Do pal ka bhii nahin jaise mere naseeb mey sukoon…
Ghar ke saajo-samaan ko khud par Humne haste dekha…
Apne Wajood ko bhi sajawat ka saamaan Bante dekha…
Harr rishte par ek maut khud ki paayii hai,
Bazaar mey jaise bolii khud apni lagayii hai…
Koii zeher jaise apne haathon pee liya humne,
Zehar pee ke bhee magar kaise jee liya humne…
Khulii aankhon sey kaisa khaufnaak yeh sapnaa dekha…
Kaii Zehreele naagon ko kadmon sey lipatt.tey dekha…
ख्वाहिश है कुछ यु तुज से मिलु कभी मैं
हो सारी दुनिया सोई ..बस जगे हो तुम और मैं
फर्क क्या मुझे हो जो उस रात ना निकले चाँद
दिखता हैं यु भी तेरा चेहरा चाँद मैं मुझे
तुम धीरे से कुछ कहते कहते रुक जाओ
और फिर रात से कहो एक पल के लिए थम जाओ
वक्त भी थम जाए उस दिन सुन ने को तुम्हे
फ़िर अपनी किस्मत पे क्यों ना इतराऊं मैं
मैं तुम्हे बस रात भर देखती रहू
तुम्हारी आँखों में हर पल और ज्यादा डूबती रहू
तुम्हारे बातें सुन बज उठे है सारे एहसास
उस एहसास मै रात भर क्यों ना रहू मैं
और भी क्या जाने हर पल सोचती हु मैं
क्यों दीवानी की तरह तुम्हे चाहती हु मैं
जानती हु ये सब कभी मुमकिन नही पर फ़िर भी
ख्वाहिश है कुछ यु तुजसे मिलु कभी मैं ..पलक...