Sunday, December 24, 2017

वो मुझे मेहंदी लगे हाथ दिखा कर रोई, मैं किसी और की हूँ बस इतना बता के रोई!
शायद उम्र भर की जुदाई का ख्याल आया था उसे, वो मुझे पास अपने बैठा के रोई !

कभी कहती थी की मैं न जी पाऊँगी बिन तुम्हारे, और आज ये बात दोहरा के रोई!
मुझसे ज्यादा बिछड़ने का ग़म था उसे, वक़्त-ए -रुखसत वो मुझे सीने से लगा के रोई!

मैं बेक़सूर हूँ कुदरत का फैसला है ये, लिपट कर मुझे बस इतना बता के रोई।
मुझ पर दुःख का पहाड़ एक और टूटा, जब मेरे सामने मेरे ख़त जल के रोई।

मैं तन्हा सा खुद में सिमट के रह गया, जब वो पुराने किस्से सुना के रोई।
मेरी नफ़रत और अदावत पिघल गई एक पल में, वो वेबफ़ा थी तो क्यों मुझे रुला के रोई।

सब गिले-शिकबे मेरे एक पल में बदल गए, झील सी आँखों में जब आँसू के रोई।
कैसे उसकी मोहब्बत पर शक़ करूँ मैं, भरी महफ़िल में वो मुझे गले लगा के रोई !....

1 comment:

गोपालकृष्ण said...

मौत ने आँखे मिलाई थीं..
मगर
तेरा दीवाना किसी ओर पे मरता कैसे ??