तुमको छोड़कर जाने का फैसला
एक पल में नहीं करती। महीनों वो खुद को समझाती है ,,,
और जिस दिन वो तुम्हारे बिना खुद को
सम्भालना और समझाना सीख जाती है ,
ठीक उसी पल वो तुमको छोड़कर सिर्फ़ ख़ुद की हो जाती है।
तुमको उस दिन से डरना चाहिए जिस दिन स्त्री प्रेम और स्वाभिमान में से ,
सवाभिमान को चुनती है।
क्योंकि उसी दिन स्त्री तुमसे मिले प्रेम को हीरे की तरह दिल में रख लेती है औऱ सारी दुनिया के लिए दिल के दरवाज़े सदा के लिए बंद कर लेती है।
ये उसका अंतिम फैसला होता है तुमको छोड़ कर जाने का।
पहले वो बार-बार तुमको एहसास कराती है कि " अब पहले जैसा प्रेम महसूस नहीं हो रहा है , प्रेम को कुछ वक्त दिया करो "
तुम उसे और उसकी बातों को लापरवाही से टाल देते हो , और एक दिन वो तमाम यादें और प्रेम समेट कर तुमसे दूर चली जाती है।
एक बार तुम से मिला प्यार छोड़ और उस प्यार को समेट कर जा चुकी स्त्री कभी पहली सी नहीं रह जाती।
तुम्हारे जिस प्रेम ने उसे कोमल और संतुलित बनाया था , तुम्हारा वही प्रेम उसे जीवन भर के लिए कठोर और निष्ठुर बना देता है।
तुम लापरवाही में कभी जान ही नहीं पाते कि मरते दम तक वो स्त्री दुबारा वैसी कभी नहीं बन पाती, जैसी वो तुमसे मिलने से पहले थी।
अपनी मौज में चलते तुम कभी जान ही नहीं पाते कि -
"तुम एक हरी-भरी , खिली औऱ खिलखिलाती स्त्री और उस के प्यार और जस्बात की हत्या कर चुके हो..."
- मन का रेडियो