मेरी तम्मनाये करे कब तक इंतजार कोई भी दुआ इसे गले क्यों नही लगती, अगर हो जाती मुरादें पल मैं पुरी .... तो मुरादें नही ख्वाहिसे कहलाती....
उस दौर की तो साहब चीजें भी वफादार हुआ करती थीं..
मेरी साइकिल की चेन उतरती थी बस एक ही घर के आगे....
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