मेरी तम्मनाये करे कब तक इंतजार कोई भी दुआ इसे गले क्यों नही लगती, अगर हो जाती मुरादें पल मैं पुरी .... तो मुरादें नही ख्वाहिसे कहलाती....
उस दौर की तो साहब चीजें भी वफादार हुआ करती थीं..
मेरी साइकिल की चेन उतरती थी बस एक ही घर के आगे....
एक अंतिम दिन लिखने की रोज कोशिश करती हूँ लेकिन तेरे मोह ने मुझसे लिखना भी भुला दिया।
वो आख़री दिन, मेरी प्रतीक्षा में हर रोज़ ज़िन्दगी से एक और दिन की मोहलत मांग लेता है और मैं तुम्हारे इंतज़ार में उसे बेफ़िजूली से खर्च कर देती हूँ।
ये दिन बहुत सुनहरे हो सकते थे....गर ये इंतज़ार न होता....
मौसम आज फिर हसीन बन गया
जब एक इंसान में इंसानियत दिख गई
वो मरने से पहले एक बार जी लेना
इसी को कहते हैं इश्क़ कर लेना...!!!
उउफ्फ्फफ़ शरारती ठंड मे......
जिद्दी धूप सा है तुम्हारा इश्क......!!!!!