Wednesday, May 8, 2013



कुछ कहना सुन ना बाकी था 
गर शब्द थोडा और साथ देते 
कुछ लेना देना बाकी था 
गर तुम हाथ ना हटा लेते .

कुछ एहसास जागने बाकी थे 
तुम कुछ पल जो ठहर जाते 
कुछ जज़्बात जागने बाकी थे
तुम बहो  मैं जो समेट लेते 

कुछ कसमे वादे पुरे कर लेते 
मैंने उनको गर रोक लिया होता 
कुछ कदम साथ चल लेते 
तुम्हे मुड का बुला लिया होता 

*****************पल *******************


3 comments:

Anonymous said...

good to see you after long time.. .awesome poem
~Pearl...

Anonymous said...

जिंदगी बदल गई है वो सब कुछ हो रहा है जो पहले कभी नहीं हुआ

संजय भास्‍कर said...

वाह! क्या बात है बहुत ख़ूब!