दर्द की बारिश मद्धम सही .... ज़रा आहिस्ता चल
दिल की मिट्टी है अभी तक नम .... ज़रा आहिस्ता चल
तेरे मिलाने और फिर तेरे बिछार जाने के बीच
फासला रुसवाई का है कम .... ज़रा आहिस्ता चल
अपने दिल में नहीं है उस की महरूमी की याद
उस की आंखों में भी है शबनम .... ज़रा आहिस्ता चल
कोई भी हो हम-सफर न हो खुश इस कदर
अब के लोगों में वफ़ा है कम .... ज़रा आहिस्ता चल
3 comments:
Sahi kaha Palak Ji aapne..!
.....कोई भी हो हम-सफर न हो खुश इस कदर
अब के लोगों में वफ़ा है कम .... ज़रा आहिस्ता चल....सचमुच में बहुत ही प्रभावशाली लेखन है... वाह…!!! वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी बधाई स्वीकारें।
आप के द्वारा दी गई प्रतिक्रियाएं मेरा मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन करती हैं।
आप के अमूल्य सुझावों का 'मेरी पत्रिका' में स्वागत है...
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your friend,
…Ravi Srivastava
ये तो मुमताज़ राशिद की ग़ज़ल है , सही लाइन है "कोई भी हो हम-सफर 'राशिद' न हो खुश इस कदर,अब के लोगों में वफ़ा है कम .... ज़रा आहिस्ता चल..."
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