बदल सा गया कुछ, ना रहे अब वों हम
खो गए ख्याल, टूट गई है कलम
चलते चलते लिया वक्त ने यूँ मोड़
जा रहे थे कहीं, चल दिए कहीं हम
ना कहने को कुछ, ना सुनने की ख्वाहिश
हर जज्बे से खाली जैसे अब हुए हम
अस्खों का समुन्दर उमड़ रहा है दिल मैं
खुश्क हैं लेकिन, नहीं हैं आँखें नम
खो रहे हैं पुराने, जुड़ रहे नए रिश्ते
खो गए ख्याल, टूट गई है कलम
चलते चलते लिया वक्त ने यूँ मोड़
जा रहे थे कहीं, चल दिए कहीं हम
ना कहने को कुछ, ना सुनने की ख्वाहिश
हर जज्बे से खाली जैसे अब हुए हम
अस्खों का समुन्दर उमड़ रहा है दिल मैं
खुश्क हैं लेकिन, नहीं हैं आँखें नम
खो रहे हैं पुराने, जुड़ रहे नए रिश्ते
ना अब वों राह है॥ ना अब वों हम.....
पलक
2 comments:
....नहीं नहीं, पुराने को न खोइए, प्लीज़. आप नए रिश्ते बेशक बनाएं, पर
पुराने तो आज भी आप को उतना ही याद करते हैं. वैसे रचना काफी जानदार है. लेकिन बहुत लम्बे अंतराल के बाद मिला पढने को.
…रवि श्रीवास्तव
from- ‘मेरी पत्रिका’
खो रहे हैं पुराने, जुड़ रहे नए रिश्ते....
Post a Comment