मेरी तम्मनाये करे कब तक इंतजार कोई भी दुआ इसे गले क्यों नही लगती, अगर हो जाती मुरादें पल मैं पुरी .... तो मुरादें नही ख्वाहिसे कहलाती....
आशिक़ी की किताबों में,
ये अनलिखा करार होना चाहिए,
इश्क़ के हिस्से में भी तो जनाब,
इतवार तो होना ही चाहिए.......
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