उसकी गर्म हथेलियों की मज़बूत पकड़ में मेरी उंगलियां बर्फ सी
ठंडी पड़ चुकी थी , जैसे जैसे रास्ता ख़त्म हो रहा था उसके हाथों की गर्मी
ठंडे पसीने से भीगनें लगी , हाथों की मज़बूत पकड़ और मज़बूत हो गई
मै उसकी आंखो में गहरा ठहरा पानी साफ देख पा रही थी , बहोत कुछ
कहना था उसे जो मेरी आंखें उसकी आंखों में पढ़ रहीं था मंजिल आ चुकी
थी दो जोड़ी पैर , उस अनचाही मंजिल पर आकर थम गये
दोनों के रास्ते एक दूसरे को काटते हुये आगे बढ़ गये... उसके ठंडे पसीने
से तर गर्म हाथों की मज़बूत पकड़ से मैंने अपनी ठंडी पड़ चुकी हथेलियां
अलग कर लीं दिल में बसे एहसासों पर बर्फ जम चुकी थी मेरी नाकामी
और उसकी बेबसी की और आंखों में ठहरा पानी हम दोनों की आंखो से
झरने सा फूट पड़ा ...
और सब कुछ एक अधूरी कहानी में बदल गया......
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