सुखी थी बेजान सी थी
अन्दर इक आग सी थी
दूर दूर तक तसती निगाहें
आश ने अश्रू भी सुखा दिए
अन्दर इक आग सी थी
दूर दूर तक तसती निगाहें
आश ने अश्रू भी सुखा दिए
इक आह्ट सी हुई
घन-घोर घटा थी छायी
ठंडी हवा यूँ लहराई
आश होले से मुस्काई
चाँद-सूरज छुप के शर्माए
प्यार की बरसा मे मैं भिन्जायी
आँचल मे हर बूँद यूँ संजोयी
हरियाली बन हर रंग ने ली अंगडाई
भीगे बदन पे बरसती बूंदों का शृंगार
उस पे चढ़ा यूँ तेरी नज़रोएँ का खुमार
उड़ा आँचल जो तुने थामा
मेघधनुष बन वोह नभ पे छाया
पलक
1 comment:
Wow, Nice Poem, Touching...
~Pearl...
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