ख्वाब तेरे सजाके बैठी है,
नीद पलकों पे आ के बैठी है ,
एक ताज़ा ग़ज़ल जुदाई की ,
रात मुज को सुना के बैठी है ,
जिंदगानी की राह पैर हर सू,
बेबसी सर उठा के बैठी है ,
आँख बरसो से किस का गम यारों ,
आज तक यु छुपके बैठी है ,
एक अनजाना चेहरा उगली दातों तले,
जाने कब से दबाके बैठा है....
पलक