वोह कुछ जो ना तुमसे कहना था
वोह जो अधुरा रहना था
वोह तुम अब भी ना समझ सके
दिल में रहकर भी वोह अलग रहे
तुमने मुझे शब्दों में बंधना चाह
मैंने तो सिर्फ़ तुम्हे चाह
यह दिल की लगी भी ऐसी थी
इस आग में मुझको जलना था
जीवन के किनारों में तुम्ही थे
में लहर बनी पर सिमट ना सकी
तुम पास मगर बहुत दूर रहे
में ओस बन बिखर ही गई
सांसे है कमजोर मन है विकल
यांदो में तुम आए पल ... विपल
वोह कुछ तोड़ गए हमें ...कुछ टूट गया
वोह सपना नही दिल अपना था…
पलक