गर ये आखे किसी की शिफारिश ना करती
दिलों से महोब्बत की पहचान होती
और महोब्बत इतनी आसन ना होती
गर ये आखे किसी की शिफारिश ना करती
उल्फत - ऐ - महोब्बत किसी के दीदार से ना बढती
दर्द की परिभाषा यु रोज ना बदलती
गर ये आखे किसी की शिफारिश ना करती
हुस्न और इश्क की ना कोई जंग होती
प्रेम के ढाई आखर यु प्रेम ग्रन्थ ना बनते
गर ये आखे किसी की शिफारिश ना
गर ये आखे किसी की शिफारिश ना
आजमाइश - ऐ - महोब्बत यु ना रंग लाती
With Special Thanks to My Best Friend Purvi . I Hope .... purvi u ill like bit editing in this poem..
palak